गणेश जी की कहानी – श्री गणेश भगवान हिंदू धर्म बहुत बड़े भगवान हैं। श्री गणेश जी माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। इसीलिए आज की कहानी में हम लोग Ganesh Ji Ki Kahani, गणेश जी की कहानी, गणेश जी की छोटी सी कहानी, गणेश जी की व्रत कथा तथा गणेश जी के बारे में सभी प्रकार की जानकारी के बारे में जानने वाले हैं।
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आज भारत समेत पूरी दुनिया में गणेश जी को किसी भी शुभ कार्य करने से पहले इनका नमन किया जाता है। आज पूरे भारतवर्ष में कोई भी शुभ काम हो बिना गणेश जी की पूजा और आराधना के बिना पूरा हो ही नहीं सकता। साथ ही भगवान श्री गणेश को भगवान शिव ने विघ्नहर्ता का दर्जा दिया था।
Ganesh Ji Ki Kahani – गणेश जी की छोटी सी कहानी
लेकिन हो सकता है कि आप लोगों में से ही बहुत लोगों को यह बात नहीं पता होगा कि भगवान शिव ने कब और क्यों गणेश जी करो विघ्नहर्ता का तोहफा भी दिया था। इसीलिए आज की इस कहानी में हम लोग Ganesh Ji Ki Kahani, Ganesh vinayak ji ki kahani, Ganesh bhagwan ji ki kahani, Ganesh lakshmi ji ki kahani, Ganesh maharaj ji ki kahani के बारे में जाने वाले हैं। तो चलिए अब गणेश जी की कहानी शुरुआत करते हैं।
1. श्री गणेश के साथ शिव पार्वती कहानी – गणेश जी की कहानी
एक दिन की बात है माता का वह घर में अकेली थी और उस वक्त घर में कोई नहीं था सेवाएं गणेश के अलावा पूनम राम लेकिन माता पार्वती जी को स्नान करने जाना था इसलिए उन्होंने गणेश को बुलाया और कहां। मैं स्नान करने जा रही हूं बिना मेरी अनुमति के बिना तुम किसी को अंदर होने मत देना।
यह सुनकर बाल गणेश ने कहा कि ठीक है माता मैं आपकी मर्जी के बिना किसी को अंदर नहीं आने दूंगा। ऐसा कहकर बाल गणेश दरवाजे के पास जाने लगा। तेरी माता पार्वती ने बुला कर कहा कि ऐसा नहीं चलेगा तुम मुझे वचन दो कि कोई अंदर नहीं आ पाएगा। तभी बाल गणेश ने कहा कि ठीक है मां मैं वचन देता हूं कि बिना आपकी मर्जी का किसी को भी अंदर आने की अनुमति नहीं दूंगा।
कुछ देर होने के बाद भगवान शिव अपने घर आए थे। मतलब की माता पार्वती के घर आए थे। क्योंकि बाल गणेश माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र थे। लेकिन इस बात की जानकारी भगवान शिव को भी नहीं थी।
जैसे ही भगवान शिव घर के अंदर आने वाला ही था। तभी बीच रास्ते में भगवान शिव को गणेश जी ने रोक लिया था। और गणेश जी ने भगवान शिव से कहा था कि मेरी माता का अनुमति है कि कोई अंदर ना जा पाए।
यह सुनकर भगवान शिव ने पूछा कि ऐसी क्या बात है जो तुम मुझे मेरे घर में अंदर जाने से रोक रहे हो। तभी गणेश जी ने कहा है कि मेरी माता स्नान करने गई है और मुझे वचन देकर गई है कि मैं किसी को अंदर आने ना दूं।
तभी भगवान शिव बहुत ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं और वह अपनी त्रिशूल निकालते हैं। और गणेश जी का गला काट देते हैं। जैसे ही माता पार्वती स्नान करके बाहर आती है वाह गणेश जी को इस हालत में देख कर हैरान हो जाती है। और कहती है कि आपने यह क्या कर दिया या तो हमारा पुत्र है।
Ganesh Ji Ki Kahani in Hindi
तभी भगवान शिव ने कहा कि मुझे क्षमा कर दीजिए मुझे नहीं पता था यह कौन है। यह मुझे अंदर आने से रोक रहा था इसलिए मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उनका सर काट दिया।
तभी माता पार्वती गुस्सा हो गई और कहने लगे कि मेरा पुत्र मुझे वापस किया जाए। इतने में भगवान शिव ने सोचा कि मैं तो इसे दोबारा उसी सर से नहीं जोड़ सकता हूं। लेकिन अगर तुम कहो तो मैं इसे किसी दूसरे की सर से जोड़कर तुम्हारे बेटे को जिंदा कर सकता हूं।
कल माता पार्वती ने भी अपनी सहमति दिखाई और कहा कि ठीक है मेरे पुत्र को जिंदा किया जाए स्टॉप तभी बगल में खड़े नंदी को भगवान शिव ने कहा है कि तुम सीधा जंगल चले जाओ, और जंगल में तुम्हें दूसरी जानवर का सर सबसे पहले देखें उस जानवर का सर काट कर लेकर आओ।
नंदी ने तुरंत जंगल का रुख किया और वह जंगल में जानवर को ढूंढने के लिए चला गया। जंगल में जाते जाते नंदी को सबसे पहले हाथी दिखा उन्होंने हाथी का सिर काट कर अपने साथ ले आया।
गणेश जी की छोटी सी कहानी
तभी भगवान से अपने साथी के सर को गणेश के सर पर जोड़कर उसे जिंदा कर दिया। यह देखकर माता पार्वती ने कहा है कि मेरा बेटा कैसा लग रहा है। सभी लोग मेरे बेटे को देखकर हसेंगे और इसे डरेंगे।
तभी भगवान शिव ने कहा है कि तुम व्यर्थ ही चिंता कर रही हो। मैं इसे जिंदा ही नहीं करूंगा बल्कि जिंदा करके पूरी तरह से वरदान भी दूंगा। कि उनकी आने वाली सभी लोग किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान श्री गणेश को याद करना अनिवार्य हो जाएगा।
तब से लेकर आज तक किसी भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान श्री गणेश जी को स्मरण किया जाता है। किसी भी शुभ कार्य करने से पहले चाहे शादी हो या किसी भी प्रकार की कोई नई चीज का उपयोग करने से पहले। भगवान श्री गणेश जी का पूजा करना अनिवार्य माना जाता है। इसके पूजा के बिना किसी भी चीज की उद्घाटन करना या कोई नया कार्य करना अशुभ माना जाता है।
2. श्री गणेश और बुढ़िया माई की कहानी
एक बार की बात है एक बढ़िया श्री गणेश जी का बहुत बड़ा भक्त था। वह हमेशा भगवान श्री गणेश की पूजा और उनकी आराधना क्या करती थी। साथ ही में भगवान श्री गणेश के पर्व के दिन व्रत भी रखती और कथा भी सुनती थी।
इससे यह पता चलता है कि हुआ बुढ़िया माई भगवान श्री गणेश का बहुत बड़ा भक्त था। लेकिन उस बुढ़िया के पास भगवान श्री गणेश की एक भी अच्छी सी मूर्ति नहीं थी। वह हमेशा सोचते थे कि अगर कहीं से भगवान श्री गणेश की मूर्ति मिल जाए तो मुझे उनकी पूजा और आराधना करने में अच्छा होगा।
उस के पास सिर्फ एक मिट्टी का गणेश की प्रतिमा थे। और वह पानी के कारण दिन प्रतिदिन मूर्ति गल जाती थी। इसी कारण से वह हमेशा परेशान रहा करती कि कोई उसे एक मूर्ति लाकर दे दे।
एक दिन की बात है वह बुढ़िया कहीं जा रही थी। तो उन्होंने रास्ते में देखा कि एक मिस्त्री घर की पत्थर को काट काट कर उसकी डिजाइनिंग कर रहा था। तभी उस बुढ़िया ने उस पत्थर से काट रहे मिस्त्री को कहा कि मुझे एक भगवान श्री गणेश की प्रतिमा दे दो भगवान तुम्हारा भला करेगा।
गणेश जी की कहानी खीर वाली
तभी वह डिजाइनिंग कर रहे हैं मिस्त्री कहता है कि जितना देर में मैं तुम्हारी मूर्ति बना लूंगा इतने में मैं एक दीवार खड़ा कर सकता हूं। मिस्त्री ने कहा कि आप यहां से चले जाइए मेरे पास टाइम नहीं है कि मैं आपको किसी भी प्रकार की मूर्ति बनाऊं।
तभी बुढ़िया माई गुस्से से वहां से जाने लगे थे। और वह जाते-जाते मिस्त्री को कह गई कि भगवान करे तुम्हारा दीवार तेरा हो जाए। उस समय से लेकर जब भी मिस्त्री दीवार बनाने की कोशिश करता विवाह टेढ़ी हो जाती थी।
आखिर मेरा दीवार तोड़ते तोड़ते शाम हो गई थी। जैसे दोबारा दीवार का काम शुरू किया। दीवार फिर से तेरी हो गई जिस कारण से मिस्त्री से मालिक ने पूछा कि यह क्या माजरा है तुम हमेशा दीवार तोड़ी क्यों कर रहे हो।
विनायक जी की कहानी
इतने में मिस्त्री कहता है कि हुजूर इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। कल सुबह हमारे दरवाजे के सामने एक बुढ़िया आई थी और वह भगवान श्री गणेश की मूर्ति बनाने के लिए कह रही थी। मैंने उससे बात को अनदेखा किया और उसे यहां से भगा दिया था। तभी तो बुढ़िया माई जाते जाते यह कर गई कि तुम जब भी दीवार उठाओगे तुम्हारा दिमाग खराब हो जाएगा।
तभी उस कंस्ट्रक्शन के मालिक ने उस बुढ़िया माई को बुलवाएं और कहा कि मैं आपको एक सोने का भगवान श्री गणेश की प्रतिमा देता हूं। तुम मेरी इस दीवार को सीधा कर दो ताकि मैं अपने काम को आगे बढ़ा सकूं। अगर सही समय पर काम नहीं हुआ तो मेरी पैसे नहीं मिलेंगे।
यह सुनकर हुआ बुढ़िया माई उस दीवार को सही करने के लिए भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना किया। और एक मूर्ति लेकर वहां से चली गई। जैसे वह बुढ़िया माई जाती है दीवार पर काम शुरू किया जाता है और दीवार फिर से अच्छी बनने लगती है।
3. दो मेंढक की कहानी – गणेश जी की कहानी
पुराने जमाने की बात है एक कुएं में एक मेंढक और उसकी पत्नी रहा करती थी। मेंढक और उसकी पत्नी कुएं में आराम से मौज मस्ती के साथ रहा करती थी। वह दोनों हर बात बाद में झगड़ा करते रहता था। क्योंकि उसकी पत्नी हमेशा श्री गणेश जी की पूरा पूजा आराधना किया करते थे।
वह हमेशा अपने मन में तथा कस के बोल कर भी विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा किया करती थी। इस बात से मेडक बहुत नाराज हुआ क्या करता था। क्योंकि उसे ऊंची आवाज में गणेश जी की पूजा करना अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन की बात है कुएं पर एक आदमी पानी लेने के लिए आता है और जैसे वह कुएं में अपना बर्तन के आता है बर्तन में पानी के साथ साथ दोनों मेंढक और उसके पत्नी आ जाती है। अब जिसने भी कुए पर पानी भर के आया था वह पानी के साथ-साथ मेंढक को भी लेकर जाकर अपने घर बर्तन में पानी गरम करने के लिए तैयारी करती है।
साथ में वह दोनों मेंढक में उसी बर्तन में रहती है और जब व्यक्ति पानी गरम करने के लिए बर्तन में डालती है तो दोनों मेंढक साथ में उसी बदन में चली जाती है। कुए से पानी थोड़ा गंदा था यही काम से उस व्यक्ति को कुएं के पानी में कुछ दिखाई नहीं दिया और पानी चूल्हे पर चढ़ा दिया गर्म होने के लिए।
जैसे-जैसे पानी गर्म होने लगी दोनों मेंढक के शरीर जलने लगा था। उसके बाद मेडक की पत्नी श्री गणेश जी की पूजा आराधना शुरू कर देती है। उसके बाद पानी चाहे कितना भी गरम हो गया था लेकिन मेंढक की पत्नी को कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था।
फिर उसका दूसरे मेंढक से उसकी पत्नी कहती है कि क्या तुम्हें सच में जलन हो रही है। दूसरे मेंढक कहता है कि मुझे बहुत ज्यादा जलन हो रही है पानी ज्यादा गर्म होता जा रहा है। तभी मेंढक की पत्नी कहती है कि तुम भी जल्दी से श्री गणेश जी की पूजा करना हो कर दो उन का जाप करना शुरू कर दो तुम्हें भी आराम मिलेगी।
जान बचाने के लिए वह भी श्री गणेश जी की पूजा करने लगती हैं और दोनों मिलकर श्री गणेश जी की पूजा आराधना करने लगते हैं पानी के अंदर है। उसके बाद श्री गणेश जी एक बछड़े के रूप में प्रकट होते हैं और पानी जो गर्म हुआ था चूल्हे पर उसे लात मारकर गिरा देता है।
उसके बाद दोनों मेंढक की जिंदगी बच जाती है और फिर दोनों कूद कूद कर उसे कुएं में जाकर छलांग लगा देता है। अब तो दोनों मेंढक श्री गणेश जी की बहुत बड़े भक्त हो गए थे और वह हमेशा श्री गणेश जी की पूजा आराधना में दिन रात बिता दिया करते थे।
4. गणेश जी की व्रत कथा बुधवार – गरीब के घर पहुंचे गणेश
रोहन और सोहन दो भाई एक साथ अपने अपने पत्नी और एक मां के साथ छोटे से घर में रहा करता था। रोहन और सोहन के पास पिता का दिया हुआ एक कपड़े की दुकान था। जिसमें दोनों मेहनत करके अपना रोजी-रोटी सता घर का पालन पोषण किया करता था।
एक रोहन और सोहन की मां कहती है कि मेरा तबीयत बहुत खराब लग रहा है मेरी बचने की कोई ज्यादा उम्मीद नहीं है। चलो मेरे जीते जी तुम लोगों में मैं अपना सारा सामान दो भागों में बांट देती हूं। ताकि आगे आने वाले दिनों में तुम दोनों भाइयों का बटवारा करने में किसी भी प्रकार की दिक्कत ना हो सके।
तुम्हें रोहन कहता है कि तुम ठीक कह रही हो मां बटवारा तो पहले ही हो जाना चाहिए रावण आपके जाने के बाद बंटवारा होने में काफी ज्यादा दिक्कत हो सकती है। उसके बाद सोहन कहता है कि पिताजी जब जा रहे थे इस दुनिया से तो उन्होंने दुकान की पूरी पूंजी बर्बाद कर दिया था।
मैंने दुकान में जाकर अच्छे से अच्छे और सामान खरीदा अपना पैसा लगाया और दुकान को फिर से पहले जैसा बना दिया हूं। दुकान में जितना भी सामान है जितना भी काम है सब मेरे बदौलत ही दिख रही है ऐसे में रोहन का दुकान में कोई भी हिस्सा नहीं हो सकता है।
मतलब की बड़ा भाई सोहन छोटे भाई रोहन को अपनी दुकान अथवा अपनी जायदाद में किसी भी प्रकार का हिस्सा लेने के लिए मना कर रहा था। फिर उसके बाद उसकी मां कहती है कि ऐसा कैसे हो सकता है दुकान पर हो तुम दोनों काम करते हो एक साथ फिर तुम मुझे उस में से हिस्सा क्यों नहीं देना चाहते हो।
उसके बाद उसकी मां कहती है कि जल्दी से इसका हिस्सा का बंटवारा करो। कितना कुछ कहने के बावजूद भी उसका बड़ा भाई सोहन हिस्सा देने से मना करता है। उसकी पत्नी कहती है कि हम इस घर में ना तो आप रह सकते हैं और ना ही रोहन रह सकता है।
क्योंकि इस घर को बचाने बढ़ाने में मेरे पति का पूरा हाथ है और अब मैं किसी को भी कोई हिस्सा नहीं देने वाली हो। यह सुनकर रोहन और उसकी मां दोनों निराश हो जाती है और अपना दूसरा पता ढूंढने के लिए निकलने का प्रबंध करने लगती है।
जाते जाते रोहन और सोहन की मां कहती है कि मुझे तुम्हारे घर से कुछ भी नहीं चाहिए बस मेरा जो एक श्री गणेश की मूर्ति रखी हुई है मंदिर में वह मुझे चाहिए। सोहन की पत्नी कहती है कि ठीक है इस मासी को ले जा सकते हैं वैसे भी मेरे पास मूर्ति पूजा करने के लिए तथा किसी भी भगवान की पूजा करने के लिए समय नहीं है।
श्री गणेश की मूर्ति लेकर रोहन और उसकी मां अपनी पत्नी के साथ बाहर निकल जाता है और कहीं दूर इलाके में चलता रहता है। कुछ दूर पहुंचने के बाद वह एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है। तीनों वहीं पर आराम करने लगता है।
जैसे ही तीनों बैठकर पेड़ के नीचे आराम कर रहा था उस गांव का मुखिया वहां आता है और श्री गणेश जी को देखकर प्रसन्न हो जाता है। मुखिया कहता है कि क्या आपको किसी भी प्रकार की दिक्कत है। मैंने तो आपको इस गांव में पहली बार देखा हूं क्या आप कहीं सफर कर रहे हैं।
तभी रोहन की मां अपने हालात का पूरा पूरा बात पूछ मुखिया को बताता है। फिर मुखिया कहता है कि किसी प्रकार की कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं है। मेरे गांव में मेरा एक जमीन है वहां मेरा काम चलता है और वहां मेरा एक झोपड़ी भी है। तुम लोगों को अगर दिक्कत ना हो तो तुम लोग वहां जाकर अपनी मर्जी से रह सकते हो। साथ ही तुम लोग वहां पर काम करना और मैं उसे बदले में तुम्हारी मजदूरी दे दिया करूंगा जैसे तुम्हारे परिवार का पालन पोषण भी हो जाएगा अच्छे से।
वही झोपड़ी में सभी तीनों लोग मिलकर रहने लगते हैं। रोहन रोजाना मुखिया के खेत में काम करने के लिए जाता था और काम करके आने पर मुखिया के तरफ से मिलने वाला धान के घर से उन्होंने अपने पास पोषण में किया करता था।
काफी दिन बीत जाने के बाद उसके घर के बाहर एक औरत और उसका बेटा आता है और कहता है कि मां जी मेरा बेटा खीर खाने को खोज रहा है। लेकिन मेरा बेटा चाहता है कि वह उसके दादी के हाथ से खाना खाए। मेरी तो कोई सांस नहीं है इसी कारण से मैं आपके पास आया हूं क्या आप मेरे बेटे के लिए खीर बना सकते हैं।
उसके बाद भगवान की मां कहती है कि क्यों नहीं बनाऊंगी मैं तो अभी खीर बनाती हूं। तभी वो लड़का कहता है कि मुझे अभी खेल नहीं खानी है बुधवार के दिन में आऊंगा और खीर खा लूंगा आप खीर बनाकर रखिएगा और जब तक मैं ना खा लूंगा आप भी कुछ मत खाइए गा।
बुधवार को रोहन की मां खीर बनाती है और उसी लड़के का इंतजार करने लगती है। लड़के का इंतजार करते करते शाम हो जाता है। रोहन की मां भी उस वक्त तक कुछ नहीं खाती है। जब शाम हो जाती है तो रोहन कहता है कि मां लगता है वह लड़का भूल गया है आने के लिए। आपको भूख लगी होगी आप अपना खाना खा लीजिए।
रोहन की मां खाना खाने के लिए जैसे ही बैठती है वह लड़का दरवाजे पर ही आ जाता है। वह लड़का आता है और कहता है कि आपने बिना मुझे खिलाए आप खाने के लिए बैठ गए हैं। तभी रोहन की मां कहती है कि मैं आपका दिन भर से इंतजार कर रही हूं। दिन भर से कुछ भी नहीं खाई हो।
तभी रोहन की मां जल्दी से उस लड़के को बुलाती है और कहती है कि पहले तुम खा लो उसके बाद हम खाएंगे। उसके बाद वो दोनों मिलकर खाना खाती है। लड़के को खाना बहुत ज्यादा पसंद आता है। वह लड़का कहता है कि आज के बाद में रोजाना ही आपके घर पर आऊंगा खीर खाने के लिए।
जिस तरह से आज आपने मेरे लिए खीर बनाई है और सुबह से कुछ भी नहीं खाई है। आपको इसी तरह से हर बुधवार को करनी होगी। क्या आप मेरे लिए इतना कर सकते हैं लड़का कहता है। उसके बाद रोहन की मां कहती है मैं जरूर करूंगी।
इसी तरह से लगातार कुछ दिन चलने के बाद एक बुधवार को वह लड़का नहीं आ पाया था। रोहन की मां दिन भर इंतजार करके भूखा है सो गए थे। उसके बाद सोने के बाद उसके सपने में वह लड़का आता है और कहता है कि आपने आज बिना कुछ खाए सो गए हैं। तभी वह औरत कहती है कि मैं तो आपका इंतजार कर रहे थे आप नहीं आए तो मैं सो गई थी।
फिर उसके बाद वाला लड़का तुरंत ही भगवान गणेश के रूप में बन जाता है और प्रकट हो जाता है। भगवान गणेश बनने के बाद वह कहते हैं कि मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था तुम इस परीक्षा में बिल्कुल सफल हो गए हो।
सुबह जब रोहन की मां उठती है तो देखती है कि जिस बड़ी बर्तन में बूढ़ी अम्मा ने खीर बनाई थी उस बर्तन में सोने चांदी हीरा मोती से भरा हुआ मिला। उसके बाद उस पैसे से उसके बेटे रोहन दें अपने लिए घर बनवाए मकान खरीदा बहुत सारी जमीनें खरीदी और फिर अपना बिजनेस करने लगा था।
एक दिन रोहन का बड़ा भाई सोहन आता है और कहता है कि मैं तो बर्बाद हो गया हूं श्री गणेश जी के जाने के बाद मेरे घर पर कोई कृपा नहीं हो रही थी। मेरी दुकान में चोरी हो गई थी दुकान का कर्ज देने के चक्कर में है घर भी बिक गया है अब मेरे रहने के लायक जगह नहीं बची है।
लेकिन उसकी मां वहां रहने से इंकार कर देती है फिर भी रोहन कहता है कि ठीक है आप यही रहिए। उसके बाद रोहन उसके मार्केट में लगे पैसों को भी सही कर देता है और बिकाऊ घर भी खरीद लेता है। अब सो परिवार भगवान गणेश जी की महिमा से प्रेरित होकर और उसके आशीर्वाद से एक साथ मिलकर रहने लगते हैं।
5. गणेश जी और तीन बुढ़िया – गणेश जी की कहानी
एक बूढ़ी अम्मा अपनी तीनों बेटे के साथ तथा उसकी पत्नी के साथ एक घर में रहा करती थी। बूढ़ी अम्मा की उम्र काफी ज्यादा हो गई थी जिस कारण से वह काफी ज्यादा बीमार रहती थी और चलने फिरने में उसे दिक्कत भी होती थी। वह बूढ़ी अम्मा हमेशा श्री गणेश जी की पूजा आराधना करने में लगे हुए रहते थे। बूढ़ी अम्मा का मानना था कि उसे मरने से पहले श्री गणेश भगवान जी का दर्शन हो जाए।
विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी के दर्शन के कारण वह बहुत सारे मंदिरों में जाया करते थे। और वहां पूजा आराधना किया करते थे। एक दिन बूढ़ी अम्मा भगवान श्री गणेश के मंदिर में जाती है और पूजा करती है। तभी पीछे से एक पुजारी आता है और कहता है कि अम्मा जी आप तो रोज भगवान श्री गणेश जी की पूजा करते हैं उसे दर्शन करना चाहते हैं।
यदि आप सही में भगवान श्री गणेश जी के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको तीर्थ यात्रा पर जाना चाहिए। क्योंकि तीर्थ यात्रा पर देश-विदेश के बहुत सारे मंदिर भगवान श्री गणेश जी की बनाए गए हैं वहां दर्शन करके आपको कुछ लाभ मिल सकता है।
बूढ़ी अम्मा आती है अपने बेटे को कहती है कि मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना है। तीनों बेटे मिलकर उनके टिकट पर अथवा जाने आने का सारा इंतजाम कर देता है। जाने के वक्त में सब कहने लगते हैं कि अम्मा अगर आपके साथ हम लोगों में से कोई और जाएगा तो आपको जाने आने में दिक्कत नहीं होगी।
अभी वह बूढ़ी अम्मा कहती है कि कोई बात नहीं है मैं अकेले ही चल दूंगी। तभी फिर उसे छोड़ने के लिए का बेटा बस स्टैंड में जाती है और बूढ़ी अम्मा तीर्थ यात्रा पर निकल जाती है। आपको बताना चाहिए वह तीर्थ यात्रा पर गई काफी दिन हो गए थे।
जब वह एक स्थान पर पहुंचे तो वहां बारिश हो रहे थे। बूढ़ी अम्मा सोचे कि आज की रात यहीं पर धर्मशाला में रुकेंगे। वहां पहले से मौजूद और भी दो स्त्री आराम कर रहे थे जो तीर्थ यात्रा के लिए ही आई थी। उसी के साथ बूढ़ी अम्मा भी आराम करने लगे थे। जब रात बहुत ज्यादा हो गए थे तो ठंडी बढ़ने लगे थे और तीनों कहने लगे थे कि अब तो चादर निकालना पड़ेगा।
तीनों अपनी-अपनी चादर को उड़कर जब सो रहे थे। तभी भगवान श्री गणेश उसकी जांच परख करने के लिए एक भिखारी बारिश में भीगा हुआ आता है और कहता है कि मुझे बहुत ज्यादा ठंड लग रही है किसी के पास कोई चादर हो तो मुझे दे दीजिए है। यह सुनकर दोनों स्त्री जो पहले से आए हुए थे वह और भी ज्यादा सो जाती है ताकि उसे ज्यादा देना ना पड़े। लेकिन बूढ़ी अम्मा उस भिखारी के पास जाती है और वह अपना चदर दे देती है कहती है कि मेरे पास स्वेटर है मैं पहनकर कर रहा था गुजार लूंगी।
फिर वह भिखारी उसके सामने भगवान श्री गणेश के रूप में प्रकट हो जाते हैं। भगवान श्री गणेश कहते हैं कि मैं तो तुम सभी परीक्षा ले रहा था। तुम सभी लोग परीक्षा में सफल हो गए हो नहीं। केवल तुम ही मेरी इस परीक्षा में पास हुए हो बोलो तुम्हें क्या चाहिए। तभी वह पुलिया कहती है कि मुझे आपके चरणों में स्थान चाहिए मैं आपके लिए मोक्ष पाना चाहती हूं।
सिर्फ रसगुल्ले क्या तमाशा सहित त्याग देती है भगवान श्री गणेश के आदेश पर भगवान ऊपर से एक रात बुलाते हैं और दोनों साथ में स्वर्गीय के लिए रवाना हो जाते हैं। दोनों स्त्री उठने के बाद देखती है कि बुढ़िया मां की जान जा चुकी है वह उठाने का प्रयास करती है लेकिन नहीं उठती है।
उधर बुढ़िया मां के तीनों बेटों के इसके बारे में जानकारी होती है वह आते हैं और अपनी मां का शरीर का अंतिम संस्कार करते हैं। फिर वह अपने घर चले जाते हैं क्योंकि उन्हें पता था कि जिस चीज के लिए मेरी मां परेशान हो रही थी भगवान श्री गणेश जी के दर्शन के लिए वह उसे हो गया है।
6. विघ्नहर्ता गणेश जी की कहानी
एक गांव में राजेश नाम का व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ एक छोटी सी घर में रहा करता था। उसके पास बहुत सारे गाय और भैंस थे। वह दूध का एक बहुत बड़ा व्यापारी था। क्योंकि उसके पास बहुत मात्रा में गाय और भैंस की जिसका दूध निकालकर वह प्रतिदिन दुकान अथवा घर में देकर अपना घर का पालन पोषण किया करता था।
एक दिन की बात है राजेश कहीं जा रहा था दूध देने के लिए अपनी साइकिल पर। जैसे ही राजेश रोड पर निकला और वहां पर एक बहुत पुराना मोड़ था और रास्ता भी गड्ढा जैसा था।
साइकिल में बांधा दूध एक तरफ ही चुका था क्योंकि दूसरी तरफ दूध नहीं था। इसी कारण से जैसे वह रोड पर जाना चाहा उसे ही वह गिर गया था। जैसे ही राजेश गिरता है उसके पैर पर बहुत ज्यादा चोट लग जाता है और वह घायल हो जाता है।
उसके बाद जैसे तैसे राजेश उठकर अपने घर की तरफ चल पाता है। लेकिन उसे यह चिंता सताने लगती है कि अगले दिन से उसका दूध दुकान है तो वह किसी के घर में कौन पहुंचाएगा। क्योंकि गिरने की वजह से उसे बहुत ज्यादा छोटे आए थे इस कारण से वह लगता है कि कुछ दिन चल नहीं पाएगा।
ऐसे में राजेश को एक उपाय समझ में आया। वह अपने दोस्त संतोष को बुलाया और कहा कि मुझे किसी वजह से पैर में जख्म हो गया है इसी कारण से मैं गांव में दूध नहीं देने जा पाऊंगा। ऐसे में अगर तुम मेरी दोस्त को गांव में पहुंच जाओगे तो मैं तुम्हारे कार्य और मेहनत के बदले तुम्हारे मेहनत के लिए पैसे दे दूंगा।
लेकिन संतोष बहुत लालची किस्म का आदमी था वह वाला मुझे कुछ पैसे नहीं चाहिए बल्कि इतने पैसे तुम कम आओगे उससे ज्यादा मतलब कि आधा दूध का पैसा वही रखने वाला था। लेकिन दूध तो दूध होता है वह ज्यादा दिन नहीं रह पाता है खराब हो जाता है इसी कारण से राजेश बोला ठीक है मैं तुम्हें आधा तो उसका पैसा दे दूंगा।
अगले दिन से संतोष राजेश के घर से दूध लेकर गांव गांव बेचने के लिए तथा पहुंचाने के लिए जाया करता था। हुस्नार गांव में गणेश चतुर्थी का त्यौहार आने वाला था तथा इस त्यौहार में बहुत सारे दूध बहुत पहले से ही राजेश ही दिया करता था।
फिर उस साल गणेश चतुर्थी आने वाला था मंदिर के पुजारी ने राजेश को खबर भेज पाया कि इतना दूध इतना बजे पहुंचा देना। राजेश का पैर जख्मी होने के कारण वह नहीं जा पाया था। ऐसे में उन्होंने बिरजू को ही कहा कि जाओ गांव में जहां गणेश चतुर्थी हो रहा है वहां पर पूरा दूध पहुंचा दो।
लेकिन संतोष बहुत ज्यादा लालची किस्म का मनुष्य था वह आधा दूध निकालकर भेज दिया और आधा दूध में पानी मिलाकर मंदिर में जाकर पहुंचा दिया। उस दूर से खीर बनाया गया तो खीर में पहले जैसा स्वाद बिल्कुल भी नहीं था।
भगवान गणेश को भी वही खीर चढ़ाया गया साथ ही लोग प्रसाद के रूप में वही खीर खाया। लोगों को भी पहले जैसी खीर नहीं लगाता है। सभी लोग शिकायत करने लगा था। ऐसे में मंदिर के पुजारी और कुछ ग्रामीण मिलकर राजेश के घर आता है और उसे बहुत ज्यादा बोलता है कहता है कि आपने दूध इस बार बहुत ज्यादा खराब दिया था इस कारण से परसाद सही से नहीं बना।
फिर भी राजेश संतोष को कुछ नहीं कहता है जैसे जैसे वह सही हो जाता है और चलने फिरने के लायक हो जाता है तो वह अपने से अब दूध बेचने के लिए गांव जाता है। लेकिन कोई भी उसकी दूध लेने के लिए राजी नहीं होता है सभी लोग कहता है कि आपके दूध में तो आधा पानी मिला हुआ रहता है।
लोगों को ऐसी बात सुनकर राजेश को संतोष की सारी हरकतें समझ में आ गए थे। जब राजेश का एक भी दूध एक भी लीटर दूध नहीं देख पाया था। तो वह मायूस होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया था। उसके बाद वहां खेलता एक बहुत प्यारा सा बच्चा आता है।
वह बच्चा आता है थोड़ा जैसे कहता है कि अंकल आपके पास तो बहुत सारे दूध है क्या मेरे लिए दूध से खीर बना सकते हैं। कभी राजेश कहता है कि मेरा दोस्त वहां से कोई खरीदेगा ही नहीं चलो मैं खीर बनाकर ही सबको खिला देता हूं इस बच्चे की ख्वाहिश भी पूरी हो जाएगी।
तभी राजेश घर जाता है और अपनी पत्नी को सभी दूध का खीर बनाने के लिए कहता है। जैसे ही खीर बनता है वह छोटा बच्चा वहां से गायब हो जाता है। अब राजेश उतनी ज्यादा खीर को क्या करेगा वह शाम होने तक एक बर्तन में ढक कर रख देता है। जब वह रात में उस बर्तन से खीर निकालने जाता है तो देखता है कि उसमें जितने सारे खीर थे वह सोना चांदी तथा जेवर में बदल गया था।
धीरे-धीरे राजेश बहुत ज्यादा अमीर हो गया था। लेकिन संतोष के घर बहुत ज्यादा दिक्कत आने लगी थी उसे घर में चोरी भी हो गई थी। अब तो उसे पास कुछ भी नहीं था हुआ मदद मांगने के लिए तथा अपना पछतावा करने के लिए राजेश के घर आता है। राजेश उसे मंदिर लेकर जाता है मंदिर के पुजारियों के पास दूध में पानी मिलाने की बात कबूल कर लेता है। फिर राजेश और संतोष मिलकर दोनों गणेश भगवान के पैरों में गिर जाते हैं और कहते हैं कि हमें माफ कर दीजिए।
गणेश जी की कहानी का निष्कर्ष
इस कहानी में हम लोगों ने गणेश जी के अनेक अनेक बातों के बारे में जानने को मिला है। यहां हम लोगों को भगवान श्री गणेश के बारे में अच्छी-अच्छी जानकारियां प्राप्त हुई है। Ganesh Ji Ki Kahani, विघ्नहर्ता की कहानी, गणपति बप्पा की कहानी, और विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश के बारे में अच्छे-अच्छे कहानियों का पाठ किया है।
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FAQ for Ganesh Ji Ki Kahani
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बाल गणेश को माता पार्वती ने क्या आदेश दिया था?
बाल गणेश को माता पार्वती जी के द्वारा उन्हें या वचन दिया गया था कि वह किसी को भी अंदर नहीं आने देगा।
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दरवाजे पर कौन आया था गणेश के सामने?
जब माता पार्वती ने स्नान करने के लिए गई थी तभी बाल गणेश को वहां रखवाली के लिए गई। तभी वहां पर भगवान शिव हां आए थे।
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भगवान शिव ने बाल गणेश के साथ क्या किया?
भगवान शिव को जो बाल गणेश अंदर नहीं जाने दे रहा था तब वह क्रोधित हो गया था और उसका सर काट दिया था।
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बाल गणेश को भगवान शिव के द्वारा क्या वरदान मिला?
श्री गणेश जी को भगवान शिव के द्वारा यह वरदान मिला के जब भी कोई शुभ कार्य करेगा उससे पहले गणेश का नाम जरूर लिया जाएगा।