लोहे के चने की खेती हिंदी नैतिक कहानियां | Moral Story in Hindi

हिंदी नैतिक कहानियां के लेख में आज हम लोग लोहे के चने की खेती के बारे में जाने वाले हैं। एक प्रकार का नैतिक कहानियां है इसे इंग्लिश में Moral Story in Hindi भी कहा जाता है। मोरल कहानियां हम लोगों को सदा से ही अपने दादी नानी से किस्से कहानियां के रूप में मोरल कहानियां ही सुना करते थे।

ऐसे में हम लोग बहुत छोटे छोटे तथा शॉर्ट स्टोरी इन हिंदी जिसमें लोहे के चने की खेती की कहानी के बारे में बताया गया है उसके बारे में चर्चा करने वाले हैं। उससे पहले आपको यह भी बता दें कि हमारी यह वेबसाइट स्टोरी हिंदी डॉट नेट पर तरह-तरह के हिंदी स्टोरी प्रकाशित की जाती है। StoryHindi.net पर आप सभी प्रकार की कहानियां को इंजॉय कर सकते हैं।

लोहे के चने की खेती हिंदी नैतिक कहानियां | Moral Story in Hindi

लोहे के चने की खेती हिंदी नैतिक कहानियां | Moral Story in Hindi
लोहे के चने की खेती हिंदी नैतिक कहानियां

किसी पहाड़ पर एक गांव में दो भाई एक घर में अलग-अलग रहा करता था। एक भाई बड़ा भाई का नाम विक्रम था और दूसरे भाई का नाम रमेश था। बड़ा भाई विक्रम हमेशा से ही छोटे भाई रमेश से बहुत ज्यादा जला करता था। इसका मुख्य कारण था कि छोटा भाई बड़े भाई से बहुत आगे निकल चुका था। क्योंकि बड़े भाई हमेशा छोटे भाई की कमी कोताही को निकालने की वजह से वह कभी आगे नहीं बढ़ पाया था और छोटा भाई हमेशा सही अपनी पत्नी के साथ साथ काम किया करता था हमेशा और वह पानी निकल चुका था।

दोनों की गुजर-बसर खेती कर कर ही हो रही थी। क्योंकि उनका घर पहाड़ पर था और वहां पर खेती के अलावा और कोई दूसरा कार्य नहीं किया जा सकता था। पहाड़ पर रहने वाले पहाड़िया लोग खेती अथवा पहाड़ से लकड़ी लाकर बेचने की कार्य को क्या करते हैं। ऐसे में वे दोनों भाई विक्रम और रमेश हमेशा से ही कृषि पर ही गुजारा किया करते थे। वैसे तो आपको बता देगी पहाड़ पर ज्यादातर चावल और चना की खेती होती है और दोनों इन्हीं फसलों में से किसे फसल को लगाया करता था।

लोहे के चने की खेती हिंदी नैतिक कहानियां | Moral Story in Hindi

एक बार की बात है दोनों भाई अपने की अपने खेत में अलग-अलग फसल लगाया था। बड़े भाई तथा बड़े भाई के पत्नी छोटे भाई से हमेशा जलता रहता था यही कारण है कि वह छोटे भाई का हमेशा नुकसान करने के बारे में सोचता रहता था तथा उनकी पत्नी भी इसी प्रकार के कार्य करते रहते थे। उस समय दोनों ही खेत में फसल लगाने का समय हो रहा था। उसी समय बड़े भाई ने अपने खेत में चावल लगाया था और छोटे भाई ने चना की खेती की थी।

छोटी नैतिक कहानी

फसल के कुछ दिन होने के बाद दोनों अपने खेतों पर तरह-तरह के तरह-तरह के खाद उर्वरक दिया करते थे ताकि के खेत में अच्छी पैदावार हो सके। क्योंकि छोटे भाई ज्यादा मेहनती थे वह हमेशा अपने खेत पर काम करता था पति पत्नी दोनों मिलकर और पत्नी घर में रहती थी रात में और पति खेत को रखवाली के लिए खेत पर ही सो जाया करता था।

और बड़े भाई हमेशा से ही अपने खेत पर वैसे ही सभी काम को छोड़कर अपने घर चले जाते थे। केवल अपने खेत में दिन के समय ही काम करने के लिए आया करते थे। इस वजह से उनके खेत में पैदावार कम होती थी और वह अपने खेत में खाद तथा उर्वरक बहुत कम डाला करते थे तथा खेत को रखवाली भी नहीं करते थे।

धीरे-धीरे समय बदलता गया और अंत में फसल कटाई का समय आ गया था। दोनों भाई ने विक्रम रमेश अपनी अपनी फसल की कटाई की तथा उसे बेचने के लिए मार्केट के लिए निकल पड़ा था। उस समय बड़े भाई विक्रम की चावल की खेती बहुत अच्छी पैदावार हुई थी बिना किसी ज्यादा मेहनत किए हैं। लेकिन छोटे भाई रमेश के फसल इतनी ज्यादा अच्छी नहीं हुई थी क्योंकि उन्होंने चना का बीज बोया था और चना की खेती करना था।

जब दोनों भाई मार्केट पहुंचा तो बड़ा भाई विक्रम कहता है कि देखो मेरे खेत में कितना सारा चावल पैदावार रहती हुआ है। आपको बता दें कि बड़ा भाई विक्रम हमेशा से ही अपने छोटे भाई को नीचा दिखाना चाहता था। उनकी पत्नी मार्केट में कहती है कि तुम तुम अपने खेत में चना लगाए थे ना देखो वह कितने चना लेकर आए हो तुम इससे तुम्हारा क्या होगा। लेकिन हम तुम्हें जब उसे बेचने की बारी आई तो बड़ा भाई विक्रम क्या चावल का दाम सामान्य था तो उसे कम कीमत में लोगों ने खरीदा था। लेकिन चना की खेती कम होने के कारण चांद चना को काफी ज्यादा उचित मूल्य मिला था।

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इसी कारण से उसे मतलब कि छोटे भाई रमेश को अपनी चना की खेती के लिए अच्छी की कीमत मिले थे। लेकिन बड़े भाई अच्छी पैदावार होने के साथ-साथ उनके चावला के कम दाम लगे थे। क्योंकि जिस समय वे दोनों विक्रम और रमेश मार्केट में अपने-अपने फसल बेचने के लिए गए थे तो उस समय की मार्केट की कीमत चावल की कीमत ₹12 प्रति केजी और चना की कीमत ₹40 प्रति किलो था। इसी कारण से बड़े भाई विक्रम को चावल उगाने के लिए बहुत कम दाम मिला था जबकि छोटे भाई रमेश को चना की फसल उगाने के लिए बहुत ज्यादा पैसे मिले थे।

अब तो विक्रम और उसकी पत्नी अपने छोटे भाई रमेश से बहुत ज्यादा जलने लगे थे क्योंकि उसके छोटे भाई रमेश कम पैदावार होने के बावजूद बड़े भाई विक्रम से अच्छी पैसे की कमाई की थी। तभी बड़े भाई विक्रम उसकी पत्नी ने यह सोच लिया था कि अगले साल हुए लोग भी चना की खेती करेंगे क्योंकि इस साल उसके छोटे भाई रमेश की फसल अच्छी ना होने के बावजूद भी उसे अच्छा खासा फायदा मिला था।

अगले साल ठीक वैसा ही करता है रमेश तो अपने खेत में चना ही लगाता है लेकिन उसके साथ साथ विक्रम भी अपने खेत में चना है लगाता है। कुछ दिन बीत जाने के बाद दोनों की फसल तैयार होने वाले थे। 1 दिन की बात है विक्रम अपनी पत्नी से कहता है कि मैंने अभी तक अपने छोटे भाई रमेश के खेत पर नहीं किया था क्या पता उसका फसल इस साल कैसा हुआ है।

यही सोचकर एक दिन बड़े भाई विक्रम अपने छोटे भाई रमेश के खेत पर जाता है घूमने के लिए। जब वह अपने छोटे भाई के खेत पर पहुंचता है तो देखता है कि छोटे भाई की है तो एकदम हरा भरा है और बेहतर फसल लगा हुआ है। इसके विपरीत जब वह अपने खेत में जाता है और देखता है तो वह अपने छोटे भाई के मुकाबले उसकी फसल बहुत कम ज्यादा बेहतर नहीं लग रहा था। यह बात उन्होंने अपनी पत्नी को बताए पत्नी ने कहा कि इस रमेश को कम पता नहीं क्या करने के लिए हमें कुछ ना कुछ सोचना होगा।

उसी समय विक्रम कहना है कि वैसे एक बाबा को जानता हूं जो हर किसी का तोड़ जानता है। अगर मैं उस बाबा से मिलने जाऊंगा तो मुझे कोई ना कोई रास्ता जरूर मिलेगा। अगले दिन विक्रम ऐसा ही करता है वह उसी बाबा के पास जाता है और कहता है कि मेरा भाई ऐसा ऐसा है तो था उससे भाई से संबंधित सारी कहानियां बताता है। तभी बाबा विक्रम को एक बोतल में कैसे दबा देती है जिसे खेत में डालने पर उसकी अनाज लोहे में बदल जाती है।

नैतिक मूल्य पर कहानी

एक दिन जब रमेश अपने खेत में खेत की रखवाली करते करते सो गया था तभी चुपके से विक्रम उसके खेत में जाता है और उसके खेत में व रसायन डाल देता है। बाबा का दिया हुआ डब्बे में दवाई इतना ज्यादा असरदार थे कि महज रात भर में ही रमेश के खेत में लगे सभी चना की फसल को लोहे में बदल दिया गया था अगले सुबह जब रमेश उठता है और अपने खेत में देखता है तो देखता है कि उसे खेत में सभी चना लोहे में बदल गया है ना

लोहे के चने की खेती हिंदी नैतिक कहानियां | Moral Story in Hindi

अब तो रमेश बिल्कुल उन्होंने सा लगा था क्योंकि उसके पास बहुत पैसे की कमी हो गई थी और इस साल से फसल भी लोहे की हो गई थी। उन्होंने बहुत ही मुश्किल से खेती की थी तथा बीज और हल चलाने के लिए पैसे कहीं से बुला लिए थे। रमेश शोर मचाने लगता है तभी जल जंगल की सभी आदमी तथा आसपास के इलाके में रहने वाले सभी आदमी आ जाता है।

जीवन मूल्य पर कहानी

रमेश बहुत चिंतित था लेकिन सामने से गांव का प्रधान मुस्कुराते हुए आता है। और कहता है कि रमेश यह क्या हो गया तुम्हारे साथ लेकिन तुम जिंदा बिल्कुल भी मत करो तुम इससे अच्छी राशि प्राप्त कर सकते हो। तभी रमेश आश्चर्य की चकित हो जाता है और पूछता है कि प्रधान जी क्या कैसे हो सकता है। तो भी प्रधान कहता है कि आजकल चना की कीमत ₹42 प्रति किलो है लेकिन लोहे की कीमत ₹50 प्रति किलो है। ऐसे में यदि अगर आपके खेत में से सभी जाने को लोहे के व्यापारी को भेज दिया जाए तो आपको उससे बहुत ज्यादा रकम की प्राप्ति हो सकती है।

रमेश ऐसा ही करता है वह मार्केट जाता है और एक कबाड़ी को अपने सभी लोहे बेच देता है। आप तो रमेश को चना की खेती से भी ज्यादा पैसा मिल जाता है क्योंकि चना तो बहुत हल्का होता है लेकिन लोहा होने के बाद चना का वजन बहुत ज्यादा हो गया था। साथ ही आपको यह भी पता होगा कि इस साल से पैदावार बहुत ज्यादा हुई थी तो उसे लोहे के चने बहुत ज्यादा मिले थे। यह देख कर बड़े भाई विक्रम बहुत ज्यादा निराशा हुआ और वह जब अपनी चना की फसल को मार्केट में बेचने के लिए जाता है।

उसे मार्केट में बहुत कम कीमत मिलता है। इसके विपरीत उसके छोटे भाई रमेश को लोहे के चने के बेचने पर बहुत ज्यादा मुनाफा होता है। अब तो छोटा भाई हो ज्यादा अमीर हो जाता है वह अपना गाड़ी बंगला सदा सब चीज बना लेता है। उसकी जिंदगी आपसे बहुत ज्यादा सुखी और आनंदमय हो जाता है। लेकिन बड़े भाई विक्रम हमेशा छोटे भाई से चलता रहता था यही कारण से वह अभी तक कठिनाई अथवा तंगी का सामना कर रहा था।

लोहे के चने की खेती की कहानी का निष्कर्ष

आज की हिंदी कहानी में हम लोग स्टोरी इन हिंदी डॉट नेट पर एक नैतिक कहानी लोहे के चने की खेती के कहानी के बारे में जानकारी हासिल किया है। उम्मीद है कि हमारी तरफ से जारी किया गया जो लेख आप लोगों को पसंद आया होगा।

FAQ लोहे के चने की खेती की कहानी
  1. लोहे के चने की खेती से अब क्या सब हासिल करते हैं?

    लोहे के चने की खेती से हमें यह सबक मिलता है कि हमें कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। क्योंकि जिस तरह का कार्य हम दूसरों के लिए करते हैं हमारे खुद पर वही कार्य उठना पड़ता है।

  2. पहली बार दोनों भाई किस किस प्रकार की फसल लगाई थी?

    पहली बार विक्रम चावल की खेती तथा रमेश चना की खेती किया था।

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